Nutrient Deficiencies in Maize: मक्के की फसल में पोषक तत्वों की कमी को कैसे पहचानें?

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धान और गेहूं के बाद मक्का देश की तीसरी सबसे महत्वपूर्ण फ़सल है। देश के कुल खाद्यान्न उत्पादन में मक्का की हिस्सेदारी लगभग 10 प्रतिशत है। प्रोटीन, विटामिन, और कार्बोहाइड्रेट से भरपूर मक्का सबसे बड़े दाने वाला अनाज है। यह सेहत के लिए इतना फ़ायदेमंद है कि इसे इंसान का सुपरफूड भी कहा जाता है। बेबीकॉर्न, भुट्टा, पॉपकॉर्न, आटा, कॉर्न फ्लेक्स और स्नैक्स में इसका खूब उपयोग होता है। खाद्यान्न के अलावा मक्का की औद्योगिक मांग भी काफी है। इससे जैविक ईंधन (बायोफ्यूल) और शराब भी बनती है। मक्का एक शानदार पशु चारा भी है।

मक्का मुख्यतः ख़रीफ़ की फ़सल है। इसकी कुल पैदावार में ख़रीफ़ की उपज की हिस्सेदारी 85 प्रतिशत है। क्षेत्रफल के लिहाज से मध्य प्रदेश और कर्नाटक (15%) सबसे बड़े मक्का उत्पादक राज्य हैं। इनके बाद महाराष्ट्र (10%), राजस्थान (9%) और उत्तर प्रदेश (8%) का स्थान है। लेकिन उत्पादन के लिहाज से कर्नाटक और मध्य प्रदेश के बाद बिहार का स्थान तीसरा है। उन्नत तकनीक और उम्दा बीजों से होने वाली मक्के की खेती से किसान अच्छा मुनाफा कमाते हैं। इसीलिए बारिश और 35 डिग्री सेल्सियस तक की जलवायु वाले इलाकों में मक्का की खेती अब साल भर होती है।

मक्के की फ़सल में पोषक तत्वों की कमी


ज़्यादा कमाई के लिए जितना ज़रूरी मक्के की फ़सल को बीमारियों, कीटों और खरपतवार से बचाना है, उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है कि मिट्टी की जाँच करके और पोषक तत्वों की भरपायी के बाद ही इसकी बुआई की जाए। मक्के की फ़सल के हर लक्षण को मौसम और बीमारियों के प्रकोप से जोड़कर नहीं देखना चाहिए, क्योंकि अनेक लक्षण मिट्टी में बुनियादी पोषक तत्वों की कमी से भी होते हैं।

नाइट्रोजन की कमी


नाइट्रोजन की कमी से मक्के की पत्तियों में कई समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। सबसे पहले, मक्के की पत्तियाँ छोटी हो जाती हैं और उनका रंग हल्का हो जाता है। यह स्थिति पौधे के संपूर्ण विकास पर बुरा प्रभाव डालती है। पत्तियों का पीलापन आमतौर पर उनके सिरे से शुरू होकर नीचे की तरफ बढ़ता है और 'वी' आकार में फैलने लगता है। समय के साथ, पत्तियाँ सूखकर मटमैले रंग की हो जाती हैं और यह सूखापन धीरे-धीरे ऊपर की तरफ बढ़ता है। यह स्थिति पौधे के लिए बहुत ही हानिकारक होती है और उसके उत्पादन में कमी का कारण बन सकती है।

मक्के के पौधों में नाइट्रोजन की कमी के कारण उनकी वृद्धि रुक जाती है और उनके विकास की गति धीमी पड़ जाती है। इस कमी के कारण पौधे के तने कमजोर हो जाते हैं और वे आसानी से टूट सकते हैं। इसके अतिरिक्त, मक्के की पत्तियों का रंग पीला पड़ने लगता है, जिससे पौधे की फोटोसिंथेसिस की क्षमता कम हो जाती है। जब पौधे की फोटोसिंथेसिस की क्षमता कम हो जाती है, तो उसे आवश्यक ऊर्जा और पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं, जिससे उसकी वृद्धि और उत्पादन में कमी आ जाती है।

नाइट्रोजन की कमी का एक और प्रभाव यह होता है कि पौधे की जड़ें भी कमजोर हो जाती हैं। कमजोर जड़ों के कारण पौधा मिट्टी से आवश्यक पोषक तत्व नहीं ले पाता है, जिससे उसकी वृद्धि में और अधिक बाधा उत्पन्न होती है। इसके परिणामस्वरूप, मक्के के पौधों का आकार छोटा रह जाता है और उनकी उपज में भी कमी आ जाती है।

नाइट्रोजन की कमी से होने वाली इन समस्याओं से बचने के लिए सबसे पहले मिट्टी की जाँच कराना आवश्यक होता है। मिट्टी की जाँच से यह पता चलता है कि मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा कितनी है और उसकी कितनी आवश्यकता है। इसके आधार पर, उचित मात्रा में खाद और उर्वरक का उपयोग करना चाहिए। खाद और उर्वरक का सही मात्रा में उपयोग करने से पौधों को आवश्यक नाइट्रोजन मिलती है, जिससे उनकी वृद्धि और विकास सही ढंग से होता है।

मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी को पूरा करने के लिए नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों का उपयोग किया जा सकता है। इन उर्वरकों में यूरिया, अमोनियम नाइट्रेट, और अमोनियम सल्फेट प्रमुख हैं। इन उर्वरकों का उपयोग सही मात्रा में करने से मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी को दूर किया जा सकता है और पौधों की वृद्धि को प्रोत्साहन मिल सकता है।

इसके अलावा, जैविक खाद का उपयोग भी नाइट्रोजन की कमी को पूरा करने में सहायक हो सकता है। जैविक खाद में गोबर की खाद, कम्पोस्ट, और हरी खाद शामिल हैं। जैविक खाद का उपयोग करने से मिट्टी की संरचना में सुधार होता है और उसमें नाइट्रोजन की मात्रा भी बढ़ती है। इससे पौधों को आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं और उनकी वृद्धि और विकास में सहायता मिलती है।

सिंचाई भी नाइट्रोजन की कमी को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। नियमित सिंचाई से पौधों को आवश्यक नमी मिलती है, जिससे वे उर्वरकों में मौजूद नाइट्रोजन को आसानी से अवशोषित कर सकते हैं। इससे पौधों की वृद्धि और उत्पादन में सुधार होता है।

नाइट्रोजन की कमी से बचाव के लिए फसल चक्र का पालन करना भी आवश्यक है। फसल चक्र का पालन करने से मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा संतुलित रहती है और पौधों को आवश्यक पोषक तत्व मिलते रहते हैं। इसके अलावा, समय-समय पर मिट्टी की जाँच कराना और आवश्यकतानुसार उर्वरकों का उपयोग करना भी महत्वपूर्ण है।

अतः, मक्के की फसल में नाइट्रोजन की कमी से बचने के लिए मिट्टी की जाँच, उचित मात्रा में उर्वरकों का उपयोग, जैविक खाद का प्रयोग, नियमित सिंचाई, और फसल चक्र का पालन करना अत्यंत आवश्यक है। इससे मक्के की फसल की वृद्धि और उत्पादन में सुधार होता है और किसानों को अधिक लाभ प्राप्त होता है।

 

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